Monday, July 1, 2013

वन्देमातरम मित्रो, बहुत दिन लगभग तीन साल से ज्यादा हुआ जाता है मैंने ब्लॉग नहीं लिखा. पता नहीं क्यों लिखने की आदत सी नहीं रही। सोचता हूँ पता नहीं मेरे लिखने से कुछ हो भी रहा है या बस यु ही अपने हाथो को और अपने दिमाग को कष्ट में डाल  रहा हूँ। वैसे विचार समाप्त हो गए हों ऐसा नहीं है मगर मैं एक बहुन्मुखी (एक्स्ट्रोवर्ट ) व्यक्ति हूँ तो ज़्यादातर भाव बोल कर व्यक्त करता हूँ शायद यही वजह है की मैं अब ज्यादा लिखता नहीं हूँ। आज मेरे मित्र विजेन्द्र विज ने कहा की कुछ लिखिए ब्लॉग पर तो याद आया की अरे हाँ मेरा भी तो एक ब्लॉग है। तो चलिए अब मैं आपसे मिला करूँगा अपने भावो और विचारो के साथ. तब तक के लिए आज्ञा  दीजिये। जय हिन्द।

Tuesday, May 11, 2010

एक और केक कटा, एक और फेरवेल हो गया ...

मनमुटाव, बहस, अबोला ऐसी ही बहुत सी यादों के साथ आज कमल का भी फेरवेल हो गया. हितेश, कमल और मैं पिछले करीब साढ़े तीन साल से हम लोग एक साथ काम कर रहे थे. हम तीन लोगो में ही पता चलता है की बर्तन चाहे तीन हों या तीस खड़कते ज़रूर हैं. हमने इन साढ़े तीन सालों में शायद ही कभी सुखद मौसम देखा हो. हमारे बीच का खिंचाव हमेशा बना रहा मगर फिर भी मुझे कमल से कभी कोई शिकायत नहीं रही, क्यूंकि मैं जानता था की उस खिंचाव के लिए कौन ज़िम्मेदार है. मेरी और कमल की आपस में बहुत सी बातें सिख धर्म और सिख गुरुओ के बारे में रहीं. हमने नांदेड के गुरद्वारे के बारे में, गुरद्वारा बंदीछोड़ के बारे में और भी बहुत से सिख गुरुओ और बाबा रसका पागल जी के बारे में भी बातें करीं. कमल ने हमेशा दिल तक पहुँचने वाली बात करी, बिना ये सोचे की वो बात किसी को खुश करेगी या दुःख पहुंचाएगी. पिछले साढ़े तीन सालो में हमारे सामने बहुत से लोग आये और गए. हमने बहुत से त्योहारों पर एक-दूसरे को बधाई थी. कमल की दी बधाईया कितनी दिल से थी इस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता मगर मेरी बधाईया हमेशा दिल से रहीं. चलिए जो बीती सो बात गयी / लो सुबह हो हुयी है रात गयी. मेरी और से कमल को आने वाले सालो के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं और बधाईया.

Saturday, April 3, 2010

भारत की पंद्रहवी जनगणना : भेड़ो की गिनती का काम शुरू

मानता हूँ की आप मेरी बात से कतई सहमत नहीं हैं और मेरे इस ब्लॉग को देश विरोधी भी मान सकते हैं. पिछले सालो में सिर्फ एक बार भारत की जनसंख्या कम हुयी है वरना तो सुरसा के मूंह की तरह बढती ही जा रही है. बचाने की कवायद और तरीके बढ़ रहे हैं मगर पैदा करने से रोकने का कोई ख़याल ही नहीं है. लोग दिन-ब-दिन, साल-दर-साल बढ़ते जा रहे हैं. आबादी लगभग सवा दो करोड़ सालाना की दर से बढ़ रही है और मोजूदा संसाधनों में काम चलाना अभी-भी मुश्किल है. हमारे कुछ समुदायों में मानना है की जब ऊपरवाला पेट देता है तो खाना भी वही देगा. भारत चंद्रयान की तमाम ऊँचायियो के बावजूद भूख और बेकारी का तांडव एक अटूट गुरुत्वाकर्षण शक्ति बनकर तमाम योजनाओं और तरक्की पसंद खयालो को ज़मींदोज़ कर रहा है. जो काम पिछले एकसौबीस सालो में नहीं हो सका क्या उस भूख और लाचारी को ख़त्म करने का काम आने वाले किसी भी वक़्त में हो सकता है ? अगर इतने सालो में भारत से भूख और अशिक्षा को ख़त्म नहीं किया जा सका तो मेरे विचार से जनगणना की कवायद भेड़ो की गिनती से ज्यादा कुछ नहीं है.

कहा तो ये जाता है की पच्चीस लाख जनगणनाकर्मियो की मदद से पूरे भारत की आबादी और मकानों की गणना की जायेगी और इसके बूते सरकार अपनी योजनायें बनाएगी. गिनवाने को तो ये काम बहुत ज़रूरी है मगर इसके बिना तरक्की अधूरी है. आखिर भारत के हुक्मरानों को पता होना चाहिए की उनके राज में आखिर कितने और किस तरह के लोग हैं. इस बार जनगणना में ईमेल और मोबाइल जैसे मानक भी तैयार किये गए हैं. पश्चिम बंगाल सरकार के आधिकारिक निवेदन के बावजूद जाति की गणना को शामिल नहीं किया गया है जिसे साल 1931 में बंद कर दिया गया था. ये अलग बात है भारत में जाति आधारित आरक्षण बहुत बार मुद्दा बनता रहा है.

चलिए, भेड़ो में सही अब हमारी ये शिकायत तो दूर हो जाएगी की हमारी तो कहीं गिनती ही नहीं है. वैसे भारत की जनगणना एक बहुत गंभीर और संवेदनशील विषय है और भारत की राष्ट्रपति महामहीम प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने देश की जनता से अनुरोध किया है की भारत की जनगणना 2011 और राष्ट्रिय जनसख्या रजिस्टर में अपना नाम सुनिश्चित करने के लिए जनसँख्या कर्मचारियों का पूरा सहयोग करें.

Monday, February 1, 2010

ये स्वयंवर नहीं व्यभिचार है...

लो जी महाराज एक और स्वयंवर आ गया। भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा में स्वयंवर का विधान नारी जाति के उत्थान और गरिमा का साक्षात् उदाहरण था मगर ये स्वयंवर तो व्यभिचार का टीवी संस्करण है. एक पुरुष जो अपनी ब्याहता वधु से अलग हो चुका है और जिसका कारण उस स्त्री का प्रतारणा का आरोप रहा है अब सज-धज कर एनडीटीवी इमेजिन पर अपना स्वयंवर रचा रहा है. अव्वल तो एक अत्याचारी और घोर लडकिवादी पुरुष को विवाह का यूं सामाजिक उपहास नहीं उड़ाना चाहिए और दूसरे जब पुरुषो के स्वयंवर का कहीं विधान ही नहीं है तो केवल टीवी दर्शको को बेवक़ूफ़ बनाने के लिए इस प्रकार के कार्यक्रम का आयोजन करने की घोर भर्त्सना की जानी चाहिए.

एनडीटीवी इमेजिन ने अब धीरे-धीरे हार का स्वाद चखना शुरू कर दिया है. इमेजिन के दो धुआंधार कार्यक्रम आयोजको की बेवकूफी के चलते धाराशाई हो चुके हैं। पहले तो 'सच का सामना' से इमेजिन को मूंह की खानी पड़ी और फिर 'राज़ पिछले जनम का' ने दर्शको के बीच अंधविश्वास को बढाने का आरोप झेला. पता नहीं क्यूँ एक नया धारावाहिक होते हुए भी 'स्वयंवर' को हमारे दिल से शुभकामनाय नहीं निकल रही हैं. स्वयंवर-एक में राखी सावंत ने सगाई कर ली और अब ईलेश को छोड़कर फिर शायद स्वयंवर-तीन के लिए तैयार हो रही हैं. सबसे मज़े की बात तो ये है की अपने ही पिछले सीज़न की वाट लगाते हुए राहुल महाजन कहते हैं 'स्वयंवर नहीं शादी'.


राहुल महाजन ने अपने प्रभावशाली पिता के नाम को बदनाम किस तरह किया है ये तो सभी ने देखा जब पिता के गुजरने के बाद ही वो नशे में मौत से जूझते हुए पाए गए. उसके बाद जब 'बिग बॉस' में पदार्पण किया तो लड़कीबाज़ की एकदम छिछोरी इमेज बनाई. मुझे तो समझ नहीं आ रहा की 'स्वयंवर' के निर्माताओ ने क्या सोचकर राहुल महाजन के स्वयंवर का विचार पारित कर दिया.

यहाँ मैं ज़िक्र करना चाहूँगा विश्व हिन्दू परिषद्, बजरंग दल, शिव सेना, दुर्गा वाहिनी आदि का जिनको सनातन संस्कृति का ये उपहास दिखाई नहीं देता. स्वयंवर का शाब्दिक अर्थ है स्वयं वर का चुनाव करना और इस भाव से देखें तो भी राहुल महाजन स्वयं के लिए वर नहीं वधु ढूंढ रहे हैं. मुझे चिंता और दुःख उन लडकियों के लिए है जो बेचारी प्रचार पाने की खातिर इस भव्य मगर वाहियात आयोजन का हिस्सा बन रही हैं. राहुल ने तो सिर्फ एक लड़की को पसंद करना है अपने हरम के लिए तो बाकी बेचारी क्यूँ अपनी ज़िन्दगी बर्बाद कर रही हैं. ईलेश के अलावा जो भी लड़के और अब तो खुद ईलेश भी 'राखी के स्वयंवर' से दुःख के अलावा कुछ हासिल नहीं कर पाए तो ये तो बेचारी लडकिया हैं.

आपसे मेरा निवेदन है एनडीटीवी इमेजीन को फ़ोन करें, ईमेल करें, पत्र लिखें और हर समभाव प्रयास करके इस घटिया कार्यक्रम को जल्द से जल्द बंद करवाएं. जय हिंद

Monday, August 10, 2009

आजकल की लाइफ में आखिर 'कूल' कैसे रहे?

मैं कोई मनोचिकित्सक या डॉक्टर नहीं हूँ, मगर फिर भी हमारे कुछ दोस्त हमें ज्ञानी और सर्वज्ञ समझते हैं. वैसे ये उनका बड़प्पन भी हो सकता है और नासमझी भी, मगर खुद को किसी अच्छे व्याख्याता या उपदेशक से कम हम भी नहीं समझते. ऐसी बहुत सी बातें हैं जो खुद मेरी समझ में नहीं आती मगर फिर भी दूसरो को सिखाने और समझाने का साहस और कभी-कभी तो दुह्साहस तक मैं सहजता से कर लेता हूँ. अभी कल ही मेरे एक आदरणीय और सादर वन्दनीय मित्र ने, जो मुझसे लगभग सात साल बड़े और एक एक्स्ट्रा बच्चे (मेरे दो हैं) के पिता हैं, मुझसे पूछ लिया की आखिर आजकल की इस दौड़-भाग और रेसीशन की मारी ज़िन्दगी में 'कूल' कैसे रहे? 'कूल' रहने से उनका मतलब 'डरमी-कूल' या किसी 'कूल-कूल तेल' से नहीं होगा ऐसा मैं ही नहीं आप भी समझते हैं. उनका मतलब था की इतनी परेशानियों और गुस्से से भरी दुनिया में आखिर शांत-दिमाग कैसे रहा जाए? एक बार को तो मुझे सवाल सुनकर ही गुस्सा आ गया था. मैं सोच रहा था "अबे! सारी दुनिया में तुम्हे मैं ही योग्य-पुरुष मिला हूँ इस बेढब सवाल के लिए?" मगर लगा की "नहीं यार एक तो अगला इतना सीरियस फेस बना कर पूछ रहा है और फिर दर पे आये हुए को दुर-दुराना हमारी आदत भी नहीं है.

तो सबसे पहले खुद को बेहद 'कूल' रखते हुए हमने अपना मशविरा झाड़ना शुरू किया "देखो यार पहली बात तो ये मान कर चलो ये 'मृत्यू-लोक' है. इस लोक में लोग साक्षात् मृत्यू तुल्य हैं. तो ये मानकर चलो की अगर तुमने उन्हें, उनके विचारों को या उनके अभिमान को मृत्यू नहीं दी तो वो ज़रूर तुम्हारे ही मान-सम्मान-अभिमान और इसी तरह के मिलते जुलते भावों का क़त्ल-ए-आम कर देंगे. इसलिए सबसे पहले तो आप ये मान लो की आप खुद बहुत कुछ जानते हो मगर क्यूंकि आप दिखावा नहीं करते, इसलिए सबसे उनकी राय पूछकर चलते हो." इतना समझाने पर मेरे दोस्त के चेहरे का भाव बदला तो सही मगर मेरे फेवर में नहीं लगा. परेशान सूरत महाशय की सूरत और ज्यादा उलझ-सी गयी. मैंने अपना प्रवचन जारी रखा "मेरा मतलब है आप दूसरो की बात सुनो और फिर उसे अपने नज़रिए पेश करते वक़्त उसमे अपनी सुनी-सुनाई बातों को यदा-कदा घुसेड दो. इसमें हमारे शास्त्र और धर्म बहुत काम आते हैं. अव्वल तो इस विषय पर लोगो की जानकारी उतनी ही होती है जितना विज्ञान के बारे में सूरज-चाँद के दिखने वाले स्वरुप की है. अगर कोई आपसे बात करे तो आप धर्म या शास्त्र की कोई बात जोड़कर अपना ज्ञान तो बघार ही सकते हो चर्चा को एक अनंत अंत की तरफ भी लेजा सकते हो. एक चर्चा जो शायद किसी अंत पर पहुँच सकती थी आप धर्म-विज्ञान-शास्त्र-पुराण और न जाने क्या-क्या को मिला कर उस चर्चा में एक मोड़ ला सकते हो. एक वक़्त आयेगा जब लोग आपको महान समझेंगे और चर्चा इतनी मुड-तुड जायेगी की मूल सवाल तुम भूल ही जाओगे." मेरे विचार से आप भी सोच रहे होंगे की कूल रहने का ये क्या तरीका में बता रहा हूँ. तो दोस्तों में तरीका नहीं बता रहा हूँ बल्कि में आपको प्रत्यक्ष दिखा रहा हूँ की कैसे चर्चा को एक अनंत अंत की तरफ ले जाया जाता है. वैसे मेरे ख़याल से तो कूल रहने का एक ही तरीका है की आप हमेशा मुस्कुराते रहो. -जय हिंद

Sunday, July 26, 2009

अरिहंत, भारत की पहली परमाणु पनडुब्बी.

अरिहंत, यही नाम है भारत के तटों की रक्षा करनेवाली नयी परमाणु पनडुब्बी का. अरिहंत का शाब्दिक अर्थ है दुश्मनों का नाश करने वाला. अरिहंत में ऐसी बहुत सी खूबिया हैं जिससे ये भारत की तटीय सुरक्षा को और भी दृढ़ कर देता है. अरिहंत, परमाणु अस्त्र ले जाने में सक्षम है. पानी के नीचे रहते हुए इस पनडुब्बी को अब दोबारा इंधन की ज़रुरत नहीं है. अपने आप में अरिहंत, भारत के दुश्मन या कहें की भारत से जलन रखने वाले देशो के लिए बहुत बड़ा काँटा है. अरिहंत का जलावतरण, यानि पहली बार इसे पानी में उतारे जाने का शुभ दिन 'विजय दिवस' को चुना गया. 'विजय दिवस' भारत-पाकिस्तान के कारगिल युद्ध में भारत की विजय को याद दिलाने के लिए मनाया जाता है. 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तान हार मानकर वापस पीछे हट गया था और भारत के जांबाज़ सैनिको की बहादुरी और शहादत के बूते हमने अपने दुश्मनों पर विजय हासिल की थी. ऐसे ही दुश्मनों को चेताने और चौंकाने के लिए भारत के रक्षा वैज्ञानिको ने अरिहंत को तैयार किया है. हमारी, सारे भारतवासियों की शुभकामनाय अरिहंत के साथ हैं. जय हिंद

विचारको की मित्रमंडली