Tuesday, August 12, 2008
हम दिल्लीवाले
बाय गौड ये आजादी की सालगिरह है या मुसीबत? दिल्ली वालो के लिए देश के लिए मनाया गया कोई भी उत्सव किसी मुसीबत से कम नहीं होता. दुनिया के सारे देश अपने कौमी त्यौहार बहुत खुशी से मनाते हैं मगर हमारे देश में कोई भी उत्सव बिना डर के नहीं मनाया जाता. उसकी वजह है की यहाँ नेताओ से लेकर भिकारी तक सब अपराधी हैं. मुसीबत तो उन नागरिको की है जिनको सरकार ज़बरदस्ती इन कौमी त्योहारों को मनाने को बाध्य करती है. 26 जनवरी हो या 15 अगस्त कोई भी दिन दिल्ली वालो के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं होता. 'आतंकवादी भले कोई वारदात न करें मगर दिल्लीवालों के मन में दहशत का आतंक तो मचा ही देते हैं.' दिल्ली की सुचारू रूप से चलने वाली तमाम नागरिक व्यवस्थाये रुक जाती हैं. मेट्रो रेल का परिचालन बंद हो जाता है. सडको पर चेक्किंग इतनी ज़्यादा की जैसे नागरिको ने ही कोई गलती की है. पुलिस और सुरक्षा एजेन्सीयो को अपने नेटवर्क पर कोई यकीन नहीं है इसलिए अच्छा यही है सडको पर चेक्किंग इतनी बढ़ा दो की लोग ख़ुद ही घर से बहार न निकले. मेरे विचार में तो आने वाले समय में सरकार ये चेतावनी भी जारी कर सकती है की "15 अगस्त और 26 जनवरी को कृपया अपने घरो से ना निकले क्यूंकि कहीं भी किसी भी साइकिल में बम हो सकता है. कोई भी मारुती वेगन आर विस्फोटको से लदी हो सकती है. अपनी सुरक्षा आपके हाथ आज पुलिस व्यस्त है नेताओ के साथ." इतना सब देखकर तो लगता है की पिछले 61 सालो में नेताओ ने हमारे देश की कितनी दुर्गत बना दी है. यकीन कीजिये कौमी त्यौहार पर दिल से यही निकलता है की "भाड़ में गया नेशनल सेलेब्रेशन" सेलेब्रेट भी कोई बन्दूक की नोक पर कर सकता है? चलिए आज 13 अगस्त तो आ ही गई है. परमपिता परमात्मा से दुआ करते हैं नेशनल सेलेब्रेशन ठीक ठाक से हो, बिहारियो, बाग्लादेशियो, और सभी बहार के प्रान्तों से आए माननिये नागरिको समेत हम दिल्लीवालो को भी चैन की साँस मिले. बाय गौड अगर राज ठाकरे ने अपनी बात सही ढंग से कही होती तो शायद सबसे पहले समर्थन मैं देता. मगर एक अच्छा और क्रांतिकारी विचार राजनीति की भेंट चढ़ गया. छोडिये इस पर बाद में बात करेंगे. -अमित माथुर, दिल्ली, amitmathur.ht@gmail.com
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2 comments:
अमित जी अच्छा लिखा है, लेकिन कुछ बातों पर मेरा मतभेद है। पहला तो यह कि अगर सुरक्षा इंतजाम बढाया जाता है तो वह हमारी ही सुरक्षा के लिए। और यह असुरक्षा हमारी नहीं हैं विदेशी ताकतों द्वारा फैलाई गई है। एक जिम्मेवार नागरिक की तरह हमलोगों को इसमें सहायता करनी चाहिए। जहां तक सेलेब्रेशशन की बात है तो उसमें कोई कमी नहीं आनी चाहिए। हम सर्फ परेशानी के डर से वह दिन कैसे भूल सकते हैं जिस दिन हम आजाद हुए। जहां तक मैं समझता हूं लोग 15 अगस्त या 26 जनवरी के दिन घर से डर के मारे नहीं निकलते ऐसा नहीं है। वे किसी पार्क में जाकर अपने परिवार या दोस्तों के साथ इंज्वाय करने को ज्यादा तरजीह देते हैं। हमें अगर इस आतंकवाद से लड़ना है तो इससे जूझना होगा, डरने से कुछ नहीं होगा। सोचिए सेना के बारे में वे भी तो हम जैसे ही लोग हैं। लेकिन देश के लिए कितनी परेशानी वे उठाते हैं। हम नागरिक तो उनके मुकाबले कुछ भी नहीं करते। जहां तक राज ठाकरे की बात आपने की है मुझे नहीं लगता कि वह अपनी बात अगर किसी और तरीके से भी करता तो सही करता। हां...नेताओं को गाली देने में मैं आपके साथ हूं। word verification हटा दें तो कमेंट देने में आसानी होगी।
प्रिये मित्रगण,
आप के व्यतिगत विचार काफी अच्छे हैं ! कोशिश करूँगा की में भी कुछ अछे विचार आप के समक्ष रखु
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