Tuesday, September 23, 2008

एकता कपूर से मुक्त होता टीवी दर्शक

एकता कपूर ने जब बालाजी टेलेफिल्म्स के बैनर में रोजाना के धारावाहिक बनाने शुरू किए थे तब शायद ख़ुद एकता ने भी नहीं सोचा होगा की ये धारावाहिक किस हद तक विषदंत बनकर भारतीय टेलिविज़न दर्शको के मन मस्तिष्क में ज़हर घोलने लगेंगे।
कहानी घर घर की धारावाहिक की कहानी के बारे में एक बार एकता ने कहा था की ये कहानी तो घर घर की है। शायद इस धारावाहिक के शुरू होते वक्त ऐसा नहीं था मगर हाँ अब जब इस धारावाहिक के बंद होने की खबरें आ रही हैं तो लगता है की हाँ अब ये कहानी घर घर की हो गई है.
समाज में कोई ऐसा रिश्ता नहीं बचा जिसे इन रात के धारावाहिकों ने बदनाम ना कर दिया हो। क्यूंकि सास भी कभी बहु थी धारावाहिक को तो आज भी स्टार प्लस के सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले धारावाहिकों में गिना जाता है.
बहुत मुद्दत के बाद अब कुछ रहत की साँस मिली है जब स्टार के अलावा दो और बड़े चैनल टीवी पर आए हैं। इनमे सबसे पहले तो एनडीटीवी इमेजिन है. इसके सारे धारावाहिक एकता कपूर टाइप धारावाहिकों से हट कर हैं. यहाँ किसी भी रिश्ते का कोई मज़ाक नहीं उडाया जा रहा.
इमेजिन पर आ रहा है धारावाहिक रामायण, महिमा शनि देव की, पृथ्वीराज चौहान, धरम वीर सागर आर्ट्स ने बनाए हैं। इन सभी धारावाहिकों में जहाँ धार्मिकता और इतिहास का पुट है वहीँ राधा की बेटियाँ कुछ कर दिखाएंगी, एक पैकेट उम्मीद, जस्सुबेन जयंतीलाल जोशी की जोइंट फॅमिली जैसे धारावाहिक रिश्तो और ज़िन्दगी के कुछ अलग मायेने दिखाने का प्रयास कर रहे हैं.
इमेजिन के अलावा अभी नया नया लॉन्च हुआ चैनल कलर्स भी काफी अच्छा प्रयास कर रहा है। कलर्स पर सबसे ज़्यादा देखा जाने वाला धारावाहिक तो मशहूर और नामवर शख्सियतों को लेकर बनाया गया 'बिग बॉस सीज़न २' है. इसके अलावा एक बहुत अच्छा धारावाहिक है बालिका बधू. राजस्थान के गाव में आज भी बाल विवाह उसी तरह से चल रहा है. इस धारावाहिक के ज़रिये इसी प्रथा का विश्लेषण किया गया है.
मेरे विचार से इन सभी धारावाहिकों को 'सार्थक धारावाहिक' का दर्जा मिलना चाहिए. यही वो प्रयास हैं जिनसे लगता है की शायद अब जल्दी ही भारतीय टेलिविज़न दर्शक एकता कपूर टाइप धारावाहिकों से मुक्त हो जायेगा. जय हिंद

3 comments:

सुजीत कुमार said...

आपने बिल्कुल ही सही लिखा है। मैं इससे इत्तेफाक रखता हूं। इस तरह के सकारात्मक पहलुओं को समाज के सामने पेश करने के पयास का स्वागत होना ही चाहिए। आज भी यह एक विवाद का वि्षय है कि चलचित्र समाज को प्रभावित करता है या समाज चलचित्रों को। वास्तव में ये दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। ऐसे में सकारात्मक पहलुओं को समाज के आगे लाने के लिए इन निर्माताओं को तथा इन पहलुओं को हमारे सामने लाने के लिए आपको भी सलाम।

Deepti Kaul said...

From the human perspective, whatever u have written is very true and very right and I completely agree with you.

निधि शेखावत said...

बकवास रचना इतना घटिया कोई ब्लॉग नहीं देखा।

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