Thursday, February 5, 2009

मैं और मेरे दोस्त भाग -2

मैंने बहुत टाइम निकालने की कोशिश की मगर अपने दोस्तों के बारे में लिखने का वक्त नही निकाल पाया। वैसे भी दोस्तों के बारे में मैं क्या सोचता हूँ इसे सोचना भी काफ़ी मुश्किल होगा ऐसा मैंने नहीं सोचा था।
निशीथ: वैसे हम निशीथ को नीटा कहते हैं, शायद इसलिए की उसके घर में भी सब उसे नीटा ही कहते हैं। आज भले ही वो एक बड़े बैंक के सिंगापुर ऑफिस में काम कर रहा है मगर आज भी जब हमारी बात होती है तो पुरानी यादो की गर्मी हमें महसूस होती है। मुझे नीटे की सबसे अच्छी बात यही लगती है की वो काफ़ी सुलझा हुआ और सीधा बन्दा है। मनीष, इस का बड़ा भाई सीधा तो बहुत है मगर कई बार उसकी बातें समझ के बाहर होती हैं। मुझे याद नहीं कभी मैंने नीटे को नॉन-वेज खाते देखा हो। अपने पुराने ज़माने के रिवाजों और अपने घर के माहौल को वो आज भी बहुत पसंद करता है। यहाँ तक की जब उसको चेकोस्लोवाकिया जाना पड़ा तो उसके सारे दिन वहां लगभग उपवास पर निकले। वैसे नीटा मुझसे उम्र में छोटा है और मेरे भाई की उम्र का होने की वजह से उसकी दोस्ती मुझसे ज़्यादा मेरे भाई से है।
दीपू - राजू: दीपक गर्ग और दीपक गुप्ता आज तक कम से कम मैं तो इस बात का फ़ैसला नहीं कर पाया। दीपक और राजू दोनों भाई हैं मगर बचपन से पता नहीं कब से इन दोनों के बीच कभी नहीं बनी। इसकी वजह क्या है हम में से शायद कोई नहीं जानता। आज दीपू से बात किए एक ज़माना हो गया है। अमेरिका में उसकी ज़िन्दगी मज़े से कट रही है इतना मुझे पता है। नीरज गुप्ता, मुझे ख़ुद यकीन नहीं हो रहा की राजू का 'स्कूल का' नाम मुझे आज तक याद है। अभी कुछ साल पहले मनीष के बेटे की बर्थडे पर मैं उस से मिला था। राजू अब बहुत स्मार्ट हो गया है। दोस्तों की पत्नियो को मैं इस ब्लॉग पोस्ट से दूर रखना चाहता हूँ इसलिए मैं किसी भी दोस्त की पत्नी के बारे में ज़िक्र नहीं कर रहा हूँ। दीपू अपनी कद-काठी की वजह से हम सब में इज्ज़त पाता रहा है। और हमारा दोस्त चुन्नू, बेचारा हमेशा मनीष और दीपू के बीच सेंडविच बनता रहा है। मनीष बल्कि मनीष ही क्या हम सभी चुन्नू को भड़का कर कुछ न कुछ ऐसा काम करवाते थे की दीपू उसको खूब खरी खोटी सुनाता था। एक बार तो चुन्नू को फिल्मो में दिखाए सीन की तरह दारु पीने का जूनून हुआ। दारु की आधी बोतल होने से पहले ही शर्त-वर्त सब काफूर हो गई और चुन्नू भाई ने हाथ मारकर गिलास तोड़ दिया। इस आवाज़ से दीपू, जो पिछले कमरे में सोरहा था वहां आ गया और सबको भागना

यादें बहुत है और वक्त कम अब मैं आपको स्कूल के दोस्तों संजय कौशिक (info@sanjaykaushik.net) और मोहित साहनी (http://www.jmdpublicity.in/) के बारे में बता रहा हूँ।
संजय: मैंने संजय से स्कूल टाइम में ही वादा किया था की मैं उस पर एक किताब (ओटोबायोग्राफी) लिखूंगा। मैं क्या करूँ उसने किताब लिखने लायक कोई महान काम तो किया ही नहीं। बचपन में अपनी मम्मी को खो देने के बाद संजय की दूसरी माँ ने उसे पाला। स्कूल में वो कभी लंच नहीं लाया और हम तीनो ने मतलब मोहित, संजय और मैंने लंच हमेशा एक साथ किया। संजय को शुरू से ही कसरत का शौक है और ये शौक आज भी मोजूद है क्यूंकि अभी परसों ही मेरी उस से बात हुयी थी तो उसने बताया था की वो 'जिम' जा रहा है। संजय को भी मेरी तरह शायरी का शौक है वो ख़ुद बहुत अच्छी कविताये लिखता है। 'विशु' उसने अपना तखल्लुस रखा है। वैसे अब वो लन्दन में रहता है और हीथ्रो हवाई अड्डे पर काम करता है। संजय और मैं पेपरों के दिनों में बिरला मन्दिर ज़रूर जाया करते थे। नहीं, नहीं, प्रार्थना करने नहीं। प्रार्थना तो उसने मुझे याद नहीं कभी की हो मगर भगवान् कृष्ण को वो अपना दोस्त कहता है। हम बिरला मन्दिर जाते थे वहां समोसे खाने। बहुत कुछ है उसके बारे में बल्कि हमारे बारे में। मैंने अपना पहला मोबाइल उसी के साथ जाके खरीदा था और आज भी वो नम्बर मेरी Identity है। संजय ने और मैंने बहुत वक्त साथ बिताया और मुझे बहुत खुशी है संजय मेरे साथ रहा है, हमेशा।

मोहित: मोहित और मैं स्कूल के बाद काफ़ी समय तक नहीं मिले। मगर अब हम दोनों में बहुत बातें होती हैं। मोहित और मैं स्कूल में लालाजी की कैंटीन से समोसे लेते और खाते थे। मोहित को हमेशा से खाने का शौक रहा है। ख़राब और कम टेस्टी खाना वो खा ही नहीं सकता। स्कूल में भी एक बार समोसों के ख़राब होने का अंदेशा होने पर उसने समोसे छोड़ दिए थे मगर मैं खा लिए। आख़िर मेरी पोक्केट मनी के पैसो के थे।

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