Saturday, March 14, 2009

आखिर नेतागिरी ही क्यूँ है है मुन्ना की मंजिल?


एक चुटकुला याद आया। एक फॅमिली में दो बच्चे एक साथ पैदा हुए, एक बच्चे ने पैदा होते ही नोट उठाये और दूसरे ने चाकू. इस पर घरवाले बहुत परेशान हुए की दूसरा बच्चा ज़रूर अपराधी बनेगा मगर उनके एक फॅमिली मेंबर ने राय दी 'घबराइये नहीं अगर अभी से चाकू उठाया है तो बड़ा होकर अपराधी नहीं आखिर में नेता बनेगा'. चुटकुले की हद तक तो ये बात हंसी में उडाई जा सकती है मगर आखिर क्या वजह हो सकती है अपराध जगत के हर मुन्ना भाई की किस्मत उसे नेता ही बनाती है. संजय दत्त ने भले ही कोई बहुत बड़ा अपराध ना किया हो मगर नेता बन जाने के बाद ये बात लगभग साबित हो गयी है की संजय दत्त का विश्वास भारतीय दंड संहिता पर ना होकर भारतीय राजनैतिक परिवेश में ज्यादा हो गया है. संजय दत्त को जो इन्साफ भारतीय दंड संहिता से मिलने की आशा नहीं है वो उसे नेतागिरी में ढूंढ रहे हैं.


सवाल फिर वही है की आखिर नेतागिरी ही हर मुन्ना भाई की मंजिल क्यूँ है? मेरे मत से इसका कारण सिर्फ हमारे और आपके जैसे बेवकूफ, निठल्ले, बददिमाग और निर्वाचन आयोग के शब्दों में कहें तो पप्पू हैं जो वोट डालने को अपनी तौहीन समझते हैं। वोट डालने जैसा महत्वपूर्ण और जिम्मेवारी वाला काम तो वो करते हैं जो भारत के जिम्मेदार नागरिक हैं मगर एक दारू की बोतल या अपनी जात के आधार पर वोट दाल देते हैं. अब अगर कोई नेता दारू या जात के आधार पर वोट हासिल करके एमपी या एलएलए बनता है तो बहुत संभव है की वो नेता पहले मुन्ना भाई ही रहा होगा.


ताक़त की चाह किसे होगी? ताक़त चाहे राजनैतिक हो या आपराधिक, ताक़त तो ताक़त है. क्या कभी अपने सोचा की हम जैसे नौकरी पेशा आम इंसान ताक़त हासिल करना क्यूँ नहीं चाहते? इसकी एक सबसे बड़ी वजह है की हम आम इंसानों को अपनी वोट की ताक़त का भी अंदाजा नहीं है, जो ताक़त हमारे पास है जब हम उसका ही इस्तेमाल नहीं कर रहे तो आखिर और किसी ताक़त की ख्वाहिश भी हमे क्यूँ होगी? मुन्ना भाई बनने वाले लोगो को सबसे पहले तो शारीरिक ताक़त का घमंड होता है, फिर आपराधिक ताक़त का, फिर पैसो की ताक़त का और सबसे आखिर में राजनैतिक ताक़त का. इसका एक ही सार है की हमारे वोट ना डालने की वजह से ही 'हर मुन्ना भाई देर-सवेर नेता बन जाता है'.

1 comment:

नितिन माथुर said...

Nanukri-pesha log 'Darpok' nahin 'Marpok' hote hain. 'Darpok' woh hota hai jo kisi jayaz cheez se ek had tak dare. 'Marpok' woh hota hai jis ka ab kuch nahi ho sakta. Ab woh dar nahin raha balki mar raha hai.

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