मैं कोई मनोचिकित्सक या डॉक्टर नहीं हूँ, मगर फिर भी हमारे कुछ दोस्त हमें ज्ञानी और सर्वज्ञ समझते हैं. वैसे ये उनका बड़प्पन भी हो सकता है और नासमझी भी, मगर खुद को किसी अच्छे व्याख्याता या उपदेशक से कम हम भी नहीं समझते. ऐसी बहुत सी बातें हैं जो खुद मेरी समझ में नहीं आती मगर फिर भी दूसरो को सिखाने और समझाने का साहस और कभी-कभी तो दुह्साहस तक मैं सहजता से कर लेता हूँ. अभी कल ही मेरे एक आदरणीय और सादर वन्दनीय मित्र ने, जो मुझसे लगभग सात साल बड़े और एक एक्स्ट्रा बच्चे (मेरे दो हैं) के पिता हैं, मुझसे पूछ लिया की आखिर आजकल की इस दौड़-भाग और रेसीशन की मारी ज़िन्दगी में 'कूल' कैसे रहे? 'कूल' रहने से उनका मतलब 'डरमी-कूल' या किसी 'कूल-कूल तेल' से नहीं होगा ऐसा मैं ही नहीं आप भी समझते हैं. उनका मतलब था की इतनी परेशानियों और गुस्से से भरी दुनिया में आखिर शांत-दिमाग कैसे रहा जाए? एक बार को तो मुझे सवाल सुनकर ही गुस्सा आ गया था. मैं सोच रहा था "अबे! सारी दुनिया में तुम्हे मैं ही योग्य-पुरुष मिला हूँ इस बेढब सवाल के लिए?" मगर लगा की "नहीं यार एक तो अगला इतना सीरियस फेस बना कर पूछ रहा है और फिर दर पे आये हुए को दुर-दुराना हमारी आदत भी नहीं है.
तो सबसे पहले खुद को बेहद 'कूल' रखते हुए हमने अपना मशविरा झाड़ना शुरू किया "देखो यार पहली बात तो ये मान कर चलो ये 'मृत्यू-लोक' है. इस लोक में लोग साक्षात् मृत्यू तुल्य हैं. तो ये मानकर चलो की अगर तुमने उन्हें, उनके विचारों को या उनके अभिमान को मृत्यू नहीं दी तो वो ज़रूर तुम्हारे ही मान-सम्मान-अभिमान और इसी तरह के मिलते जुलते भावों का क़त्ल-ए-आम कर देंगे. इसलिए सबसे पहले तो आप ये मान लो की आप खुद बहुत कुछ जानते हो मगर क्यूंकि आप दिखावा नहीं करते, इसलिए सबसे उनकी राय पूछकर चलते हो." इतना समझाने पर मेरे दोस्त के चेहरे का भाव बदला तो सही मगर मेरे फेवर में नहीं लगा. परेशान सूरत महाशय की सूरत और ज्यादा उलझ-सी गयी. मैंने अपना प्रवचन जारी रखा "मेरा मतलब है आप दूसरो की बात सुनो और फिर उसे अपने नज़रिए पेश करते वक़्त उसमे अपनी सुनी-सुनाई बातों को यदा-कदा घुसेड दो. इसमें हमारे शास्त्र और धर्म बहुत काम आते हैं. अव्वल तो इस विषय पर लोगो की जानकारी उतनी ही होती है जितना विज्ञान के बारे में सूरज-चाँद के दिखने वाले स्वरुप की है. अगर कोई आपसे बात करे तो आप धर्म या शास्त्र की कोई बात जोड़कर अपना ज्ञान तो बघार ही सकते हो चर्चा को एक अनंत अंत की तरफ भी लेजा सकते हो. एक चर्चा जो शायद किसी अंत पर पहुँच सकती थी आप धर्म-विज्ञान-शास्त्र-पुराण और न जाने क्या-क्या को मिला कर उस चर्चा में एक मोड़ ला सकते हो. एक वक़्त आयेगा जब लोग आपको महान समझेंगे और चर्चा इतनी मुड-तुड जायेगी की मूल सवाल तुम भूल ही जाओगे." मेरे विचार से आप भी सोच रहे होंगे की कूल रहने का ये क्या तरीका में बता रहा हूँ. तो दोस्तों में तरीका नहीं बता रहा हूँ बल्कि में आपको प्रत्यक्ष दिखा रहा हूँ की कैसे चर्चा को एक अनंत अंत की तरफ ले जाया जाता है. वैसे मेरे ख़याल से तो कूल रहने का एक ही तरीका है की आप हमेशा मुस्कुराते रहो. -जय हिंद
Monday, August 10, 2009
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