Saturday, December 13, 2008

नेताओ को गाली-क्या हम सही कर रहे हैं?

बिल्कुल सही कर रहे हैं। नेताओ की तो जात ही ऐसी होती है ताली वो पैसे देकर बजवा लेते हैं और गाली से उनको कोई फर्क नहीं पड़ता. आप भी यही सोचेंगे मगर यहाँ मेरा ये बेफिजूल का सवाल करने का मकसद कुछ और है. भारत में करोडो रुपया खर्च करके चुनाव कराये जाते हैं. छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा नागरिक हक रखता है अपनी पसंदीदा सरकार चुनने का. मगर समय के साथ साथ सरकार चुनने का ये जज्बा कम होता जा रहा है. लोग कहते हैं वोट क्यूँ दें क्यूंकि सारे नेता तो चोर हैं. शायद ही कोई नागरिक होगा जो नेताओ में और अपनी ख़ुद की चुनी सरकार में विश्वास रखता होगा. आख़िर ये अविश्वास और नफरत हमारे दिलो में कहाँ से आई? कोई भी कवि, लेखक, पत्रकार या 'सभ्य नागरिक' नेताओ को अच्छा नहीं कहता. ये प्रक्रिया कई सालो से चली आ रही है और इसी का नतीजा है भारत के आने वाले भावी नागरिको का 'लोकतंत्र' और 'सरकार चुनने के लोकतान्त्रिक ढंग' से विश्वास का उठाना.

आज कोई भी सभ्य नागरिक अपने बच्चो को नेता नहीं बनाना चाहता. अनपढ़ और गुंडे किस्म के लोग आज नेता बन रहे हैं तो इसकी वजह है हमारे मन का पूर्वाग्रह. हम ये मानकर चलते हैं की नेता तो बुरे होते हैं. मगर सिर्फ़ अपने बच्चो के मन में लोकतंत्र और नेताओ के लिए अविश्वास और दुर्भावना भरना इस समस्या का समाधान नहीं है. वोट डालने हम जाते नहीं, भारत के राष्ट्रीय गान के समय खड़ा होना चाहिए ये बात सिर्फ़ और सिर्फ़ ढकोसला कहलाती हैं. तो फ़िर आख़िर भारत का निजाम जा किस और रहा है? यहीं मेरा सवाल है की क्या नेताओ को गाली देकर हमारे कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है? सभ्य और सुसंस्कृत समाज वोट डालने क्यूँ नहीं जाता? पढ़े लिखे लोग जो अपनी गाढी कमाई से टैक्स कटवा-कटवा कर आधे हुए जा रहे हैं क्यूँ अपनी ज़िन्दगी का कुछ वक्त अपने ही लिए सरकार चुनने में नहीं लगा रहे? मेरे विचार से वो वक्त आ गया है जब वोट डालना अधिकार नहीं रहेगा कर्तव्य हो जायेगा. इसलिए प्लीज़ नेताओं को गाली मत दीजिये. अपने बच्चो को बताइये की नेता ही हैं जो हमारे देश के बड़े फैसले करते हैं और इन नेताओं को चुनने का काम आप को करना है. नेता और लोकतंत्र बुरा नहीं है बल्कि सही बुद्धि से वोट न डालना बुरा है.

2 comments:

prakharhindutva said...

अमित जी आपने तो हमारे ब्लॉग पर दर्शन देना ही बन्द कर दिया... कभी नेटिंग करते करते आइए और अपनी टिप्पणी से अलंकृत कीजिए

www.prakharhindu.blogspot.com

prakharhindutva said...

www.prakharhindu.blogspot.com..... हमारे हिन्दू शूरवीरों ने जिस योजनाबद्ध तरीके से एक राष्ट्रीय कलंक को 6 दिसम्बर 1992 को धोया उस योजना के पीछे दो सत्ता के लालची लोगों का हाथ था। एक ने तो सत्ता का पूर्ण सुख भोग लिया पर दूसरा अभी भी कतार में है। यह व्यक्ति 13 दिसम्बर 2001 की घटना के लिए सीधे तौर पर ज़िम्मेदार है। इस सत्तालोलुप व्यक्ति को आजकल भारत के प्रतीक्षारत प्रधानमन्त्री के नाम से भी जाना जा रहा है। असल में इसने भारत भूमि पर राज करने के लिए हिन्दुत्व का भी जमके सहारा लिया अपना उल्लू सीधा किया पर अब बदले माहौल को देखकर सेक्युलरवाद की राह पकड़ अपनी स्वार्थसिद्धि की कामना कर रखता है।

यदि यह हाल है आदर्शवादी और इमानदार माने जाने वाले नेताओं का तो तमाम सेक्युलरवादियों और अन्य दलों के नेताओं से कोई भी आशा रखना मूर्खता ही है।

....www.prakharhindu.blogspot.com

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