Sunday, March 1, 2009

स्कूल की यादें आज भी ताज़ा हैं

आज मेरे स्कूल में पुराने स्टूडेंट्स का एक मिलन समारोह था। सचमुच एक अजीब सा एहसास है वक्त में पीछे की तरफ़ देखना। ज़मीन पर पड़े क़दमो के निशाँ धुन्द्लाने लगे हैं मगर पुराने दिनों को पुरानी दुनिया में जाकर देखना और महसूस करना एक खूबसूरत एहसास है।
मेरा स्कूल 'हारकोर्ट बटलर सीनिअर सेकेंडरी स्कूल' दिल्ली के प्रतिष्ठित मन्दिर बिरला मन्दिर के बिल्कुल साथ खड़ा है। मैंने इस स्कूल में पहली कक्षा में एडमीशन लिया था साल था 1978 और अगले बारह साल मेरे इसी स्कूल की चारदीवारी में पढ़ते-लड़ते-झगड़ते और एक इतिहास बनाते हुए बीतने थे। उस वक्त हमारा स्कूल दिल्ली के चंद प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक था। आज जो हमारे लिए इतिहास है वो एक समय हमारे लिए मजबूरी था। मजबूरी इसलिए की दिल्ली का कोई भी बच्चा स्कूल नहीं जाता, उसे स्कूल भेजा जाता है। स्कूल में बारह साल बिताना और आज एक बार फिर वहां जाना सचमुच एक बेहतरीन अनुभव रहा।
आपको बताते हुए सचमुच खुशी हो रही है की हमारे पीटी टीचर महल्वाल सर आज भी वहां थे और हमारे तत्कालिन प्रिंसिपल श्री जे.सी.गोएल भी वहां अपनी धर्मपत्नी के साथ थे। एक टी-५ मैच का भी आयोजन भी किया गया जिसमे काफी लोगो ने हिस्सा लिया और उस विशाल ग्राउंड पर क्रिकेट खेलने के अपने दिनों को ताज़ा किया।
मुझे याद है हमारी क्लास से बिरला मन्दिर की घड़ी दिखाई देती थी। बरसात के दिनों में सारे स्कूल की ज़मीन भीग जाती थी और वहां के तमाम पेड़-पौधे हमें किसी बाग़ में खड़े होने का एहसास करते थे।
हमारे स्कूल का सेटलाईट पिक्चर आप यहाँ देख सकते हैं :
http://wikimapia.org/#lat=28.6337214&lon=77.1993399&z=18&l=0&m=a&v=2&search=mandir%20marg%2C%२०देल्हि
मुझे आज भी याद है हमारे इंग्लिश के पुंज सर ने किस तरह एक लड्डू का डिब्बा बैठे-बैठे ख़तम कर दिया था। हमारे स्कूल का महत्त्व हमारे जीवन में बहुत है मगर हम अब उसे भूल चुके हैं। आज स्कूल जाकर मुझे लगा की शायद में सबसे छोटा हूँ। हमारे स्कूल के 1940, 1942, 1947 जैसे पुराने बेच के स्टूडेंट्स भी वहां थे और 60-70 बेच के तो काफ़ी सारे लोग थे। पुराने दोस्तों से मिलने का जो रंग उनके चेहरे पर था वो देखते ही बनता था। सबसे इंटेरेस्टिंग बात तो आपको बताई ही नहीं। यहाँ मेरे ऑफिस में मेरे कलीग के पापा और चाचा भी वहां थे, वो दोनों ही मेरे स्कूल से 1964 में पास आउट हैं।
खैर! मुझे तो बहुत खुशी है की मैं यादों में वापस जा सका। अब उम्मीद यही है की मेरी क्लास के और भी दोस्त मुझे मिलेंगे।

1 comment:

उन्मुक्त said...

पुरातन क्षात्र समारोह हमेशा एक बेहतरीन मिलन होता है। यह हमें, हमारे सबसे अच्छे बीते समय की याद दिलाता है।

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