भारत एक विशाल और बेहद खर्चीला लोकतान्त्रिक ढांचा है. महामंदी के इस दुखद समय में भी भारत को अपने देश के इसी लोकतान्त्रिक ढांचे के बेतहाशा खर्च को बर्दाश्त करना पड़ रहा है. भारत के लोकतंत्र की सबसे बड़ी मुसीबत इसका एकसार और अनैतिक प्रक्रिया वाला चुनावी ढांचा है. भले ही भारत इसे अपनी अनेकता में एकता की ताक़त बताय मगर व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखें तो चुनाव की वर्तमान प्रक्रिया बेहद खराब और लचर है. यहाँ हर किसी स्तर और मानसिकता के नागरिक को हर किसी स्तर के चुनावों में भाग लेने का अधिकार है. एक गरीब और अनपढ़ व्यक्ति जो भारत का एक सम्मानित नागरिक है मगर रोज़ी-रोटी और भूख से ऊपर नहीं सोच सकता, उसे भारत की लोकसभा के चुनावों में संसद सदस्य बनाने वाले अति-महत्वपूर्ण और संवेदनशील चुनाव में वोट डालने का पूरा अधिकार है. क्या लोकतंत्र और संसद में नियम-कानून बनाने वाले नहीं जानते की भूखे पेट पर किसी भी तरह का काम करवाना बहुत आसान बात है? भूख अगर इंसान को जानवर बनने के लिए मजबूर कर सकती है तो बाहुबली नेता को वोट डलवाना तो बहुत मामूली सा काम है.
ये तो सवाल है. मगर आखिर इसका जवाब क्या है?
एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था के अनुसार भारत का लोकतंत्र विश्व में 35 वे नंबर पर है. भारत के विशाल और प्राचीन लोकतंत्र के लिए इस से शर्मनाक बात नहीं हो सकती की भारत का लोकतंत्र पहले दस तो छोडिए ना तो पहले बीस और ना ही पहले तीस लोकतंत्रो में है.
भारत को अब शायद त्री-स्तरीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था की ज़रुरत है. इस व्यवस्था का अर्थ है की भारत में चाहे नागरिक सब सामान हैं मगर लोकतान्त्रिक अधिकार सबके अलग-अलग हैं.
१) नगर निगम चुनाव: नगर निगम के चुनावों में भारत के सभी नागरिको के वोट का अधिकार सामान है. किसी शहर के नगर निगम से उस शहर का हर नागरिक प्रभावित होता है और नगर निगम के सभासदों की जवाबदेही सिर्फ नगर निगम सीमा के अन्दर ही निहित होती है. इस चुनाव में उस शहर के नगर निगम सीमान्तर्गत आने वाला प्रत्येक नागरिक वोट देने का अधिकारी है. इसके लिए हरा वोटिंग कार्ड जारी किया जायेगा.
२) विधानसभा के चुनाव: इस स्तर से नागरिको के वोट अधिकार बदल जाते हैं. इस चुनाव में वोट देने का अधिकार केवल उन नागरिको का होगा जो या तो आठवी कक्षा से अधिक पढाई किये हुए हों या जिनकी आमदनी पच्चीस हज़ार रूपये सालाना से अधिक हो. इसके लिए नागरिको बड़ा अपना शिक्षा प्रमाण पत्र और आय प्रमाण पत्र सरकार के पास जमा करना होगा. इन नागरिको को संतरी कार्ड जारी किया जायेगा.
३) लोकसभा चुनाव : लोकसभा का कार्यक्षेत्र पूरा हिंदुस्तान होता है इसलिए हिंदुस्तान को चलाने के लिए जिन संसद सदस्यों को हम चुनते हैं वो बेहद जवाबदेह और गंभीर व्यक्तित्व वाले नेता होना आवश्यक है. इन नेताओ को चुनने का अधिकार उन नागरिको के पास होना चाहिए जिनके शिक्षा दसवी पास या आय एक लाख रूपए सालाना से अधिक हो. इसके लिए पेनकार्ड धारको की योग्यता का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इन नागरिको को सफ़ेद कार्ड जारी किया जागेया.
फायेदा:
१) चुनाव आयोग को पता रहेगा की कहाँ चुनाव करवाना है और कहाँ नहीं. इस प्रकार चुनाव पर होने वाला खर्च भी बचेगा.
२) सरकार को अपने नागरिको की शैक्षणिक योग्यता और आर्थिक स्थिति का पूरा पता रहेगा.
३) नेताओं के प्रचार और अधिकार का क्षेत्र बदल जायेगा.
४) नेता अपने मतदातो के प्रति अधिक जिम्मेवार बनेंगे.
५) मतदाताओ में अपने मत के प्रति विश्वास और उत्तरदायित्व का भाव बढेगा.
६) मतदाता सिर्फ वोट बैंक बनकर नहीं रह जायेंगे.
मेरी भारत के सभी लोकतंत्र प्रिय नागरिको से प्रार्थना है कृपया आवाज़ उठाइये और ये तीन स्तर का वोटिंग सिस्टम लागू करवाइए.
1 comment:
क्या बात है साहब कहीं भी नियमित हाजिरी नहीं हो रही है आपकी?आपके दूसरे ब्लॉग तक भी आ पहुंचा हूँ।आपकी कलम में ईश्वर स्याही कभी कम न होने दे ये ह्रदय से दुआ है।खूब लिखें .
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