Tuesday, May 11, 2010
एक और केक कटा, एक और फेरवेल हो गया ...
मनमुटाव, बहस, अबोला ऐसी ही बहुत सी यादों के साथ आज कमल का भी फेरवेल हो गया. हितेश, कमल और मैं पिछले करीब साढ़े तीन साल से हम लोग एक साथ काम कर रहे थे. हम तीन लोगो में ही पता चलता है की बर्तन चाहे तीन हों या तीस खड़कते ज़रूर हैं. हमने इन साढ़े तीन सालों में शायद ही कभी सुखद मौसम देखा हो. हमारे बीच का खिंचाव हमेशा बना रहा मगर फिर भी मुझे कमल से कभी कोई शिकायत नहीं रही, क्यूंकि मैं जानता था की उस खिंचाव के लिए कौन ज़िम्मेदार है. मेरी और कमल की आपस में बहुत सी बातें सिख धर्म और सिख गुरुओ के बारे में रहीं. हमने नांदेड के गुरद्वारे के बारे में, गुरद्वारा बंदीछोड़ के बारे में और भी बहुत से सिख गुरुओ और बाबा रसका पागल जी के बारे में भी बातें करीं. कमल ने हमेशा दिल तक पहुँचने वाली बात करी, बिना ये सोचे की वो बात किसी को खुश करेगी या दुःख पहुंचाएगी. पिछले साढ़े तीन सालो में हमारे सामने बहुत से लोग आये और गए. हमने बहुत से त्योहारों पर एक-दूसरे को बधाई थी. कमल की दी बधाईया कितनी दिल से थी इस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता मगर मेरी बधाईया हमेशा दिल से रहीं. चलिए जो बीती सो बात गयी / लो सुबह हो हुयी है रात गयी. मेरी और से कमल को आने वाले सालो के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं और बधाईया.
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